SCO सम्मेलन: जून से उलट अब ईरान पर इज़रायल व अमेरिकी हमलों की निंदा के समर्थन में आया भारत

Sep 3, 2025 - 23:35
 0  0
SCO सम्मेलन: जून से उलट अब ईरान पर इज़रायल व अमेरिकी हमलों की निंदा के समर्थन में आया भारत
चीन के तियानजिन स्थित मीजियांग कन्वेंशन एंड एक्ज़िबिशन सेंटर में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले देश.

जून में ईरान पर इज़रायली हमलों के ख़िलाफ़ जून में ही शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के बयान का समर्थन करने से इनकार करने के ढाई महीने बाद भारत ने अब तियानजिन घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसमें इज़रायल और अमेरिका दोनों की सैन्य कार्रवाई की 'कड़ी निंदा' की गई है.

नई दिल्ली: ईरान पर इज़रायली हमलों के ख़िलाफ़ इस साल जून में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के बयान का समर्थन करने से इनकार करने के ढाई महीने बाद भारत ने तियानजिन घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसमें इज़रायल और अमेरिका दोनों की सैन्य कार्रवाई की ‘कड़ी निंदा’ की गई है.

मालूम हो कि सोमवार (1 सितंबर) को तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन में अपनाए गए इस घोषणापत्र में कहा गया है कि सदस्य देश ‘इज़रायल और संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा किए गए सैन्य हमलों की कड़ी निंदा करते हैं.’

एससीओ के घोषणा पत्र में इन हमलों को ‘अंतरराष्ट्रीय कानून और संयुक्त राज्य चार्टर के घोर उल्लंघन’ के साथ ही ईरान की संप्रभुता का ‘अतिक्रमण’ बताया गया है.

इसमें चेतावनी दी गई है कि ऐसी कार्रवाइयां, जिनमें नागरिक मारे गए और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों को नुकसान पहुंचा, ‘क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा को कमज़ोर’ करती हैं और ‘वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए गंभीर परिणाम’ लाती हैं.

जून में भारत ने एससीओ के बयान से खुद को अलग रखा था

उल्लेखनीय है कि भारत का यह समर्थन 14 जून के उस बयान से बिल्कुल अलग है, जब नई दिल्ली ने इज़रायली हमले शुरू होने के एक दिन बाद एससीओ के पहले के एक स्वतंत्र बयान से खुद को अलग कर लिया था.

उस समय विदेश मंत्रालय ने एक नोट जारी कर स्पष्ट किया था कि नई दिल्ली एससीओ के फैसले का भागीदार नहीं है. भारत का रुख उस दौरान निंदा करने से इतर केवल ‘गहरी चिंता’ व्यक्त करने और बातचीत व कूटनीति का आग्रह करने तक ही सीमित रहा था.

ज्ञात हो कि 13 जून को हुए इज़रायली हमलों में ईरानी सैन्य और परमाणु ठिकानों को निशाना बनाया गया था, जिसमें कथित तौर पर 78 लोग मारे गए थे. इसमें तीन वरिष्ठ सुरक्षा अधिकारी और तेहरान के शीर्ष परमाणु वार्ताकार अली शमखानी भी शामिल थे. इस दौरान नातांज़ परमाणु प्रतिष्ठान को भी नुकसान पहुंचा था.

इन हमलों की जवाबी कार्रवाई में ईरान ने भी मिसाइल और ड्रोन हमले किए, जिसके बाद आगे की बातचीत हुई और आखिर में अमेरिकी हमलों ने ईरानी प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया.

हालांकि, एससीओ के उस समय के बयान से दूर रहते हुए भारत ने बाद में 25 जून को ब्रिक्स घोषणापत्र को समर्थन दिया था, जिसमें ईरान के हमलों का भी ज़िक्र था. हालांकि वह काफ़ी नरम शब्दों तक सीमित था. उसमें केवल ‘गंभीर चिंता’ की बात कही गई थी और इज़रायल या अमेरिका का नाम लेने से परहेज किया गया था.

भारत ने अपने रुख में बदलाव के लिए कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया

उल्लेखनीय है कि ईरान के हमलों पर भारत के रुख में बदलाव के लिए कोई आधिकारिक स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है.

तियानजिन घोषणापत्र में ‘फिलिस्तीनी-इज़रायली संघर्ष के लगातार बढ़ते जाने पर गहरी चिंता’ भी व्यक्त की गई, और उन कार्रवाइयों की निंदा की गई जिनके परिणामस्वरूप ‘कई नागरिक हताहत’ हुए हैं और गाज़ा में ‘विनाशकारी मानवीय स्थिति’ पैदा हुई है.

एक संयुक्त वक्तव्य में ‘तत्काल, पूर्ण और स्थायी युद्धविराम’ के साथ ही निर्बाध मानवीय पहुंच और शांति एवं स्थिरता के लिए नए सिरे से प्रयासों की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया है.

यह निंदा गाज़ा में तेज़ी से बिगड़ते हालात की पृष्ठभूमि में की गई है, जहां अगस्त 2025 में संयुक्त राष्ट्र समर्थित एकीकृत खाद्य सुरक्षा चरण वर्गीकरण (आईपीसी) ने आधिकारिक तौर पर गाज़ा प्रांत में अकाल की घोषणा की.

मालूम हो कि अक्टूबर 2023 में हमास के आतंकवादी हमले के बाद गाज़ा में इज़रायल की सैन्य कार्रवाई शुरू होने के बाद से 63,000 से ज़्यादा लोग, जिनमें ज़्यादातर नागरिक हैं, मारे जा चुके हैं.

तियानजिन में राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी भाषा का समर्थन करते हुए भारत ने एससीओ के आर्थिक एजेंडे के कुछ हिस्सों से समर्थन वापस लेना जारी रखा. इस घोषणापत्र में चीन की बेल्ट एंड रोड पहल के लिए समर्थन की पुष्टि की गई, और रूस, ईरान, पाकिस्तान और मध्य एशियाई सदस्यों ने इस परियोजना के ‘संयुक्त कार्यान्वयन पर चल रहे कार्य’ का उल्लेख किया.

भारत ने इस खंड से खुद को संबद्ध नहीं किया, और 2018 में एससीओ में शामिल होने के बाद से अपना रुख बरकरार रखा.

इसके अलावा घोषणापत्र में 2030 तक की आर्थिक विकास रणनीति और उसके कार्यान्वयन की योजना का भी ज़िक्र किया गया है, लेकिन यह भी कहा गया है कि इन्हें केवल ‘इच्छुक सदस्य देशों’ द्वारा ही आगे बढ़ाया जाएगा.

यह सावधानीपूर्वक शब्द भारत के इससे बाहर निकलने के निर्णय को दर्शाते हैं, जहां 2023 में अपनाए गए रुख को बरकरार रखा गया है.

तियानजिन घोषणापत्र के अन्य भागों को भी ‘इच्छुक देशों’ की श्रेणी में रखा गया है. एससीओ विकास बैंक, सैटलमेंट के लिए राष्ट्रीय मुद्राओं के उपयोग और क़िंगदाओ व्यापार एवं आर्थिक क्षेत्र के माध्यम से सहयोग संबंधी प्रावधानों को केवल इच्छुक प्रतिभागियों द्वारा ही आगे बढ़ाए जाने वाली पहल के रूप में तैयार किया गया था.

बीआरआई और 2030 रणनीति, जहां भारत का समर्थन न करना सर्वविदित है. यहां, यह स्पष्ट नहीं है कि नई दिल्ली ने इन अन्य उपायों से बाहर रहने का विकल्प चुना है या नहीं.

What's Your Reaction?

Like Like 0
Dislike Dislike 0
Love Love 0
Funny Funny 0
Angry Angry 0
Sad Sad 0
Wow Wow 0