सहाबी नदी के अस्तित्व एवं पुनर्जीवन पर एन. जी. टी. हुआ सख्त

Oct 10, 2025 - 19:06
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सहाबी नदी के अस्तित्व एवं पुनर्जीवन पर एन. जी. टी. हुआ सख्त

सहाबी नदी के अस्तित्व और पुनर्जीवन पर एनजीटी हुआ सख्त 

हरियाणा / धारूहेड़ा:

कभी दक्षिण हरियाणा की जीवनरेखा कही जाने वाली साहिबी नदी (जिसे बाद में नजफगढ़ ड्रेन कहा गया) आज प्रदूषण की चपेट में आकर अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है। यह नदी जो कभी अरावली की पहाड़ियों से निकलकर धारूहेड़ा और रेवाड़ी होते हुए मसानी बैराज तक निर्मल जल लेकर बहती थी, अब औद्योगिक कचरे और सीवरेज के जहरीले मिश्रण से भर चुकी है।

इस गंभीर पर्यावरणीय संकट को लेकर गांव खरखड़ा निवासी सामाजिक कार्यकर्ता प्रकाश यादव ने वर्ष 2022 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) में याचिका दायर की थी।

याचिका में उन्होंने यह मुद्दा उठाया कि मसानी बैराज क्षेत्र में छोड़े जा रहे प्रदूषित जल से आसपास के गांवों का भूजल दूषित हो रहा है और यह स्थिति सार्वजनिक स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए खतरा बन चुकी है।

एनजीटी का सख्त रुख — “सहाबी नदी को नजफगढ़ ड्रेन कहना पर्यावरण के साथ अन्याय”

नई दिल्ली स्थित राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) की प्रधान पीठ में 9 अक्टूबर 2025 को इस मामले की सुनवाई हुई।

पीठ में माननीय न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी (न्यायिक सदस्य) और डॉ. अफ़रोज़ अहमद (विशेषज्ञ सदस्य) शामिल थे।

सुनवाई के दौरान न्यायपीठ ने कहा कि सहाबी नदी का मूल स्वरूप “नजफगढ़ ड्रेन” के नाम के पीछे दब गया है, जो पर्यावरण और इतिहास दोनों के साथ अन्याय है।

न्यायालय ने कहा —

“सहाबी नदी एक स्वतंत्र प्राकृतिक जलधारा है। इसे केवल नाला या ड्रेन कहना इसकी आत्मा का अपमान है। इस नदी के मूल नाम और स्वरूप को पुनर्स्थापित किया जाना चाहिए।”

एनजीटी ने इस मामले में केंद्र सरकार के पर्यावरण मंत्रालय और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भी आवश्यक पक्ष के रूप में शामिल करते हुए उन्हें रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।

मसानी बैराज — जहरीले जल का बड़ा स्रोत बनता जा रहा है

धारूहेड़ा के पास स्थित मसानी बैराज, जो कभी बारिश के पानी और सहाबी नदी की स्वच्छ धारा से भरा रहता था, अब चारों ओर से आने वाले औद्योगिक अपशिष्ट, सीवरेज और रासायनिक जल से प्रदूषित हो चुका है।

इस जहरीले जल के कारण आस-पास के गांव — खरखड़ा, मसानी, भटसाना, ततारपुर खालसा, खलियावास,तितरपुर, जीतपुरा,आलावलपुर, जड़थल,खिजुरी, धारूहेड़ा आदि — का भूजल अत्यधिक दूषित हो चुका है।

विभिन्न जांचों में पाया गया है कि इन क्षेत्रों में टीडीएस, फ्लोराइड, आयरन और मैग्नीशियम की मात्रा खतरनाक स्तर तक पहुंच चुकी है।

नतीजतन, खेती की जमीन की उर्वरता घट रही है, पशुधन बीमार पड़ रहे हैं और लोगों को त्वचा एवं श्वसन संबंधी बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है।

बरसात के मौसम में यह प्रदूषित जल खेतों और घरों तक फैल जाता है, जिससे स्थिति और भयावह हो जाती है।

पर्यावरण और जलवायु के लिए बढ़ता खतरा

विशेषज्ञों का कहना है कि मसानी बैराज में जमा यह प्रदूषित जल केवल स्थानीय प्रदूषण नहीं फैला रहा, बल्कि यह जलवायु परिवर्तन में भी योगदान दे रहा है।

इस जल में सड़ते अपशिष्ट से मीथेन, कार्बन डाइऑक्साइड और नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसें उत्सर्जित हो रही हैं, जिससे वातावरण में ग्रीनहाउस प्रभाव बढ़ रहा है।

गर्मी के दिनों में क्षेत्र में तेज दुर्गंध और मच्छरों की बढ़ती संख्या स्थानीय निवासियों के लिए बड़ी समस्या बन चुकी है।

गुरुवार की सुनवाई में एनजीटी के निर्देश

एनजीटी ने अपने आदेश में कहा है कि —

राज्य सरकार दो सप्ताह के भीतर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करे।

केंद्र का पर्यावरण मंत्रालय नदी के नाम “सहाबी” को पुनर्स्थापित करने और उसके पुनरुद्धार पर अपना स्पष्ट पक्ष रखे।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड नदी में प्रदूषण के स्रोतों की पहचान कर उसके समाधान की ठोस योजना पेश करे।

इस मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर 2025 को होगी।

साथ ही न्यायालय ने मंत्रालय के सचिव को आदेश की प्रति ईमेल द्वारा भेजने के निर्देश दिए हैं ताकि समयबद्ध अनुपालन सुनिश्चित किया जा सके।

प्रकाश यादव का कहना — “सहाबी नदी की आत्मा को वापस लाना मेरा संकल्प है”

याचिकाकर्ता गाँव खरखड़ा निवासी प्रकाश यादव ने कहा —

“सहाबी नदी केवल पानी की धारा नहीं, बल्कि इस क्षेत्र की पहचान है। आज यह औद्योगिक और मानव अपशिष्ट गंदगी का भंडारण केंद्र बन गई है। मेरा उद्देश्य दोष तय करना नहीं, बल्कि इस नदी की आत्मा को फिर से जीवित करना है। जब तक यह नदी अपने मूल स्वरूप में नहीं लौटती, तब तक हमारा पर्यावरण अधूरा रहेगा।”

उन्होंने कहा कि एनजीटी का सख्त रुख इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है और अब उम्मीद है कि सरकारें इस दिशा में ठोस कार्रवाई करेंगी।

निष्कर्ष — हरियाणा की नदी संस्कृति के पुनर्जागरण की पुकार

सहाबी नदी का यह संघर्ष केवल एक नदी की कहानी नहीं, बल्कि हमारी पर्यावरणीय चेतना की परीक्षा है।

विकास की दौड़ में हमने अपनी नदियों को नालों में बदल दिया है, पर अब समय है कि हम उन्हें उनके प्राकृतिक रूप में लौटाने का संकल्प लें।

एनजीटी का आदेश सहाबी नदी के पुनर्जागरण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है — यह न केवल हरियाणा, बल्कि पूरे उत्तर भारत के लिए पर्यावरणीय जागरूकता का प्रतीक बन सकता है।

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