‘अवैध विदेशी नागरिकों’ के लिए डिटेंशन केंद्र बनाएं राज्य व केंद्र शासित प्रदेश -गृह मंत्रालय

गृह मंत्रालय ने राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे अवैध विदेशी नागरिकों के लिए होल्डिंग सेंटर या डिटेंशन कैंप बनाएं. यदि कोई यह साबित नहीं कर पाए कि वह विदेशी नहीं है और जमानत नहीं दे पाता, तो उसे इन सेंटरों में रखा जाएगा.
नई दिल्ली: गृह मंत्रालय ने मंगलवार (2 सितंबर) को गजट नोटिफिकेशन जारी कर सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को निर्देश दिया है कि वे अवैध विदेशी नागरिकों की आवाजाही पर रोक लगाने के लिए ‘होल्डिंग सेंटर’ या डिटेंशन कैंप बनाएं. इन सेंटर्स में उन्हें तब तक रखा जाएगा जब तक उन्हें वापस उनके देश नहीं भेज दिया जाता.
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सरकार (केंद्र, राज्य, केंद्र शासित प्रदेश, डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर या मजिस्ट्रेट) यह तय कर सकती है कि कोई व्यक्ति कानून के तहत विदेशी है या नहीं, और इस बारे में फैसला लेने के लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित ‘फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल’ के पास मामला भेज सकती है. फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल में अधिकतम तीन सदस्य होंगे, जिनके पास न्यायिक अनुभव होगा.
अगर कोई व्यक्ति यह साबित नहीं कर पाता कि वह विदेशी नहीं है और जमानत भी नहीं दे पाता, तो उसे होल्डिंग सेंटर में रखा जाएगा.
गृह मंत्रालय ने कहा कि यदि कोई विदेशी गंभीर अपराधों में दोषी पाया गया है तो उसे भारत में प्रवेश या रुकने की अनुमति नहीं दी जाएगी. बिना केंद्र सरकार की अनुमति के कोई भी विदेशी भारत में किसी भी पहाड़ की चोटी पर नहीं चढ़ सकता या चढ़ने की कोशिश नहीं कर सकता.
निजी क्षेत्र में विदेशी नागरिकों को रोजगार देने के लिए भी दिशानिर्देश जारी किए गए हैं. कोई भी विदेशी जिसके पास भारत में नौकरी (इम्प्लॉयमेंट) के लिए वैध वीजा है वह बिना संबंधित सिविल अथॉरिटी की अनुमति के – बिजली, पानी, पेट्रोलियम जैसे क्षेत्रों में निजी कंपनियों में नौकरी नहीं कर सकता.
इसके साथ ही डिफेंस, स्पेस टेक्नोलॉजी, न्यूक्लियर एनर्जी या मानवाधिकार जैसे क्षेत्रों में निजी कंपनियां बिना केंद्र सरकार की इजाजत किसी भी विदेशी को जॉब नहीं दे सकतीं.
एक अन्य नोटिफिकेशन में कहा गया है कि नेपाल और भूटान के नागरिक भारत में जमीन या हवाई मार्ग से आएं तो उन्हें पासपोर्ट और वीजा देने की आवश्यकता नहीं है. यह छूट उन तिब्बती नागरिकों के लिए भी है, जो पहले से भारत में रह रहे हैं या प्रवेश के समय संबंधित रजिस्ट्रेशन ऑफिसर के पास पंजीकरण करवाकर प्रमाणपत्र ले चुके हैं—अगर वे 1959 के बाद लेकिन 30 मई 2003 से पहले भारत आए हैं.
नोटिफिकेशन के अनुसार, अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय के लोग (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) जो धार्मिक प्रताड़ना के कारण 31 दिसंबर 2024 या उससे पहले भारत में शरण लेने आए हैं, उनको (चाहे वे वैध दस्तावेजों के साथ आए हों या नहीं) छूट दी जाएगी.
भारतीय नागरिक होने का प्रमाण क्या है?
गौरतलब है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मंगलवार (12 अगस्त, 2025) को लोकसभा में एक सवाल के जवाब में यह स्पष्ट नहीं किया कि भारत में नागरिकता साबित करने के लिए किन-किन ‘वैध दस्तावेज़ों’ की आवश्यकता होती है. मंत्रालय ने कहा कि नागरिकता का निर्धारण नागरिकता अधिनियम, 1955 और उसके तहत बने नियमों से होता है.
दरअसल, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन के सांसद सुदामा प्रसाद ने मंत्रालय से अन्य सवालों के अलावा यह भी पूछा था कि पूछा ‘भारत में नागरिकता साबित करने के लिए किन-किन वैध दस्तावेजों की श्रेणियों का विवरण सरकार के पास है.’
राज्य गृह मंत्री नित्यानंद राय ने लिखित उत्तर में कहा, ‘भारत की नागरिकता, नागरिकता अधिनियम 1955 और उसके तहत बनाए गए नियमों के प्रावधानों के अनुसार तय होती है.’
स्वीकार्य दस्तावेजों का उल्लेख किए बिना, जवाब में कहा गया कि नागरिकता ‘जन्म (धारा 3), वंश (धारा 4), पंजीकरण (धारा 5), प्राकृतिककरण (धारा 6) या क्षेत्र के विलय (धारा 7) के आधार पर हासिल की जा सकती है. नागरिकता प्राप्त करने और तय करने के लिए पात्रता मानदंड नागरिकता अधिनियम 1955 और उसके तहत बनाए गए नियमों के प्रावधानों के अनुसार है.’
इससे पहले, 5 अगस्त को मंत्रालय ने लोकसभा को बताया था कि नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत केंद्र सरकार के लिए यह अनिवार्य है कि वह हर भारतीय नागरिक का पंजीकरण करे और उन्हें राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करे.
मंत्रालय ने यह जवाब तृणमूल कांग्रेस की सांसद माला रॉय के उस सवाल पर दिया था, जिसमें उन्होंने उन कार्डों का विवरण पूछा था, जिन्हें कानून के मुताबिक भारतीय नागरिक की पहचान के रूप में स्वीकार किया जाता है.
नियमों में कहा गया है कि राष्ट्रीय पहचान पत्र उन नागरिकों को जारी किए जाएंगे जिनका विवरण भारतीय नागरिकों के राष्ट्रीय रजिस्टर या राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) में दर्ज है.
लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर एनआरसी तो हुआ नहीं है, और जिस एक राज्य (असम) में यह प्रक्रिया पूरी करने कोशिश हुई, उसका अब तक कोई ठोस नतीजा नहीं निकला है.
ध्यान रहे, सुप्रीम कोर्ट हाल में चुनाव आयोग की हां में हां मिलाते हुए कहा है कि आधार कार्ड को नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता है. इसी तरह बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी कहा है कि आधार कार्ड के साथ-साथ पैन कार्ड और वोटर आईडी कार्ड को भी नागरिकता का प्रमाण नहीं माना जा सकता है.
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